उत्तराखण्ड देवभूमि का परिचय:-
उत्तराखण्ड भारतवर्ष का सत्ताइसवां राज्य है। हिमालय क्षेत्र से विभूषित इस राज्य को भारतीय पुराणों में कुर्माचल तथा उत्तराखण्ड की संज्ञा दी गई है। यह राज्य अपनी भौतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विशिष्टताओं का एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करता है। प्राचीनकाल से ही इस क्षेत्र में अनेक ऋषि-मुनियों ने अपने आध्यात्मिक केन्द्र स्थापित किए हैं इसलिये इसे 'देवभूमि' भी कहा जाता है। धार्मिक ग्रन्थों में स्थान स्थान पर इस क्षेत्र का वर्णन मिलता है। यह राज्य भू-वैज्ञानिकों, प्राणी एवं वनस्पति शास्त्रियों सैलानियों आदि के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा है।
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उत्तराखण्ड |
स्थिति व विस्तार:-
उत्तराखण्ड 28°43' से 31°27' उत्तरी अक्षांशों व 77°34' से 81°02' पूर्वी देशान्तरों के मध्य लगभग 53483 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर विस्तृत है। इसके अन्तर्गत गढ़वाल व कुमाऊँ मण्डल तथा हरिद्वार जनपद सम्मिलित है। गढ़वाल मण्डल में सात जिले शामिल हैं-देहरादून, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली एवं हरिद्वार तथा कुमाऊँ मण्डल में छः जिले हैं-नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बानेश्वर, चम्पावत और उधम सिंह नगर उत्तराखण्ड के पश्चिम में हिमाचल प्रदेश, पूर्व में नेपाल, उत्तर में तिब्बत एवं दक्षिण में गंगा-यमुना के मैदान से सीमांकित हैं। उत्तराखण्ड की पूर्वी सीमा काली नदी, पश्चिमी सीमा टोंस नदी एवं उत्तरी सीमा महाहिमालय श्रेणी में स्थित अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा नदी द्वारा बनती है। उत्तराखण्ड सदा से सुन्दर नैसर्गिक दृश्यों हरे-भरे पहाड़ों, नदी घाटियों, बहुमूल्य जड़ी बूटियों के लिये विख्यात रहा है।
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pic. bhuvan |
उत्तराखण्ड प्रदेश की प्राकृतिक संरचना:-
भू पारिस्थितिकी की दृष्टि से उत्तराखण्ड एक कठिन प्रदेश है मैदानी से पर्वतीय भाग 200-7000 मीटर तक की ऊंचाई को छूता है कुछ भाग इससे भी ऊंचे है। भूसंरचना धरातलीय ऊंचाई नाप एवं वर्षा की मात्रा में भिन्नता होने के कारण उत्तराखण्ड के क्षेत्रीय मानवीय क्रिया-किलापों में विभिन्नता होना स्वाभाविक है। इसी आधार पर इस राज्य को 4 उप प्रदेशों में विभाजित किया जा सकता है। जिसका विवरण इस प्रकार है
1. मुख्य हिमालय क्षेत्र :-
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उत्तराखण्ड |
इस प्रदेश का अधिकांश भाग हिमान्डादित रहता है। 150 किलोमीटर चौड़ी इस पेटी का औसत तल 4000 से 6000 मीटर है। यहां नन्दादेवी (7817 मोटर) सर्वोच्च शिखर है। यहां
- गंगोत्री (6672 मीटर),
- बंदरपूड (6315 मोटर)
- त्रिशूल (7273 मीठा),
- केदारनाथ (6940 मीटर),
- खम्बा (7138 मीटर)
- कामेट (7756 मीटर),
- नंदादेवी (7817 मीटर),
- पंचाचूली (6905 मोटर),
- नरपर्वत (5831 मीटर),
- नारायण पर्वत (5965 मी.)
- भागीरथी पर्वत (6843 मीटर),
- नंदाकोट (6861 मीटर),
- दूनागिरी (7066)
- माणापर्वत (7434 मीटर),
- सर्वोोपन्य (7075 मीटर)
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आदि हिमाच्छादित शिखर है यह प्रदेश प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से महत्वहीन है। इस प्रदेश में फूलों की घाटी स्थित है। कुछ जगह छोटे-छोटे घास के मैदान है जिन्हें बुग्याल, पयार तथा अल्पाइन पारवर्स आदि नामों से पहचाना जाता है।
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pic map of india |
इस क्षेत्र में मिखम, केदारनाथ, गंगोत्री, डीम एवं कोसा आदि विशाल हिमनद प्लिस्टोसीन युग में होने वाले हिमाच्छादन के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इस क्षेत्र के गंगोत्री व यमुनोत्री हिमनद गंगा एवं यमुना नदियों के उद्गम स्थान है। सम्पूर्ण प्रदेश अत्यन पथरीला व कटरा-फटा है, जो कई पंखाकार उपनतियों वाली मोड्दार श्रृंखलाओं द्वारा निर्मित है। यह प्रदेश अधिकतर ग्रेनाइट, नाइस व शिस्ट शैलों द्वारा आवृत्त है जलवायु की दृष्टि से यह क्षेत्र सबसे ठण्डा है। ऊंची चोटियां सदैव हिमाच्छादित रहती हैं। विभिन्न ऊंचाइयों पर तापक्रम में विभिन्नता पाई जाती है फिर भी सामान्यत: 3330 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले भागों में शीतकालीन तापक्रम क्वथनांक बिन्दु से कम रहता है परन्तु ग्रीष्मकालीन मौसम ठण्डा सुहावना होता है।
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ग्रीष्मकाल में मौसम अनुकूल होने के कारण दक्षिणी भागों से लोगों का स्थानान्तरण मुख्यतः अप्रैल, मई व जून माहों में होता है। मई व जून माहों में निचले क्षेत्र से लोग आवश्यक सामग्री सहित प्रदेश के ग्रीष्मकालीन अधिवासों को आबाद कर देते हैं। जुलाई तथा अगस्त माहों में यहां के प्रमुख निवासी भोटिया उच्च घाटियों में भ्रमण करते हैं। यही माह उच्च घाटियों में कृषि की दृष्टि से भी अनुकूल है। भोटिया पर्वतीय उच्च घाटियों (4000 मीटर ऊंची) में अप्रैल-मई माह में आकर कृषि कार्य प्रारम्भ करते हैं। चार माह के उपज काल में मडुवा, गेहूं, जौ प्रमुख रूप से हल तथा कुदाल के बल पर कड़ा परिश्रम करके उत्पन्न किया जाता है। अलकनन्दा की घाटी, माणा, नीती के आसपास जो मुख्य रूप से उत्पन्न होता है। ग्रीष्मकालीन ग्रामों में भेड़ व बकरियों के आने से चहल-पहल बढ़ जाती है। प्रायः 10,000 से 14000 फीट ऊंचाई वाले क्षेत्रों के अल्पाइन चरागाह पशुचारण के प्रमुख केन्द्र बन जाते हैं, जहां भागीरथ तथा अलकनन्दा घाटी से जाड़ तथा भारछा अपने पशुओं को चराने के लिए आते हैं। प्रदेश में वर्षा अधिकांश रूप से ऋतु में होती है। वर्षों को मात्रा 200 से.मी. या इससे अधिक होती है। शोत ऋतु मे वर्षा नाममात्र को किन्तु हिमपात अधिक होता है। ग्रीष्मकालीन भानसूनी हवाये पर्वतों को पार करके उत्तर की ओर नहीं जा सकती।
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जिससे वृष्टि छायाकित प्रदेश में स्थित घाटियां प्रायः शुष्क रहती हैं। 3330 मीटर की ऊंचाई वाले भागों में शीतोष्ण कटिबन्धीय सदाबहार नुकोली पत्तो वाले वनों के वृक्ष फर, सरो, देवदार, कैल सबआदि प्रकार के वन मिलते हैं। उसके ऊपर 3900 मीटर तक कुछ घारों और झाड़ियां आदि मिलती हैं। इससे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वनस्पति का नितांत अभाव रहता है।
आर्थिक दृष्टि के आधार पर यह क्षेत्र नितान्त पिछड़ा हुआ है। कृषि कार्य केवल घाटियों में ग्रीष्मकाल के चार माहों में ही केन्द्रित है।
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