उत्तराखंड का परिचय भाग 5:-
ताल व झील:-
उत्तराखण्ड हिमालय में कई झीलें हैं जिनका निर्माण भूमि के धरातल पर भूगर्भाव शक्तियों द्वारा परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप तथा हिमानियों द्वारा हुआ है। हिमनदीय झीलों तथा भूगर्भीय शक्तियों द्वारा निर्मित झीलें स्थाई है। भूमि अवतलन के धरातल पर विशाल गत उत्पन्न हो जाते हैं जिनमें जल भरने पर झीलें बनती है। कुमाऊ की अनेक झौले इसी प्रकार की हैं। इसके अलावा हिमनदॊ द्वारा निर्मित गर्यो में हिम के पिघले हुए जल से हिमानी निर्मित झीलों का निर्माण होता है।
UTTARAKHAND KA PARICHAY |
उत्तराखण्ड अनेक झीलों के लिए भी प्रसिद्ध है, बृहत तथा लघु हिमालय में अनेक सरोवर ऐसे हैं जो वहां की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक स्थिति को बदलने में सहायक हुए हैं, गढ़वाल में ड्योडीताल, मासरताल, जरालताल, सहस्रताल, नंदीकुण्ड, रूपकुण्ड, गौरीकुण्ड आदि तथा कुमाऊं में पार्वतीताल तड़ागताल, गरूड़ताल, खुरपाताल, नैनीताल, भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल, हरीशताल, लोखामताल, श्यामताल आदि प्रमुख हैं।
नैनीताल:-
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री पार्वती अपने पति शिवजी के अपमान को न सह सकने के कारण हवन कुण्ड में जल गयी। यज्ञ का आयोजन दक्ष प्रजापति ने किया था। जिसमें उन्होंने अन्य देवी-देवताओं के साथ शिव को आमन्त्रित नहीं किया था। जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि पार्वती सती हो गयी है, तो वे वैराग्य और दुःख से अभीभूत हो गये। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहां-जहां पर सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्तिपीठ हो गये। जहां पर सती के नयन गिरे थे, वहीं पर नैनादेवी के रूप में उमा अर्थात् पार्वती का स्थान बना। नयनों की अश्रुधारा ने यहां पर ताल का रूप ले लिया।
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नैनीताल की ऊंचाई समुद्र सतह से 1983 मीटर झील की गहराई 15 से 90 फीट तथा क्षेत्रफल 132.5 एकड़ है। इस झील का खोज 1839 ई. में अंग्रेज पर्यटक पी. वैरन द्वारा की गयी। जनसंख्या के बढ़ते आवागमन एवं पर्यटन के बढ़ने के कारण नैनीताल का पानी प्रदूषित हो गया है। स्वयं सेवी संस्थाओं तथा सरकारी प्रयासों से झील को साफ रखने का प्रयास किया जाता रहा है। परन्तु उससे अधिक जन-जागरूकता की आवश्यकता है। जिससे इस सुन्दर झोल का अस्तित्त्व सदैव बना रहे।
भीमताल:-
इस ताल की लम्बाई 448 मीटर चौड़ाई 175 मीटर गहराई 15 से 50 मीटर तक है। यह नैनीताल से भी बड़ी झील है। इस झील के बीच में एक टापू है। भीमाकार होने के कारण इसे भीमताल कहते हैं, परन्तु कुछ विद्वान इस ताल का सम्बन्ध पाण्डु पुत्र भीम से भी जोड़ते हैं। यह एक उपयोगी झोल है। पर्यटन के साथ-साथ इसके जल को सिंचाई के काम में भी लिया जाता है। इसके एक कोने से नहर निकाली गयी है।
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नौकुचियाताल:-
भीमताल से तीन किलोमीटर की दूरी उत्तर पूर्व की ओर नौ कोने वाला 'नौकुचियाताल' समुद्र की सतह से 1219 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस क्षेत्र के निवासियों का विश्वास है कि नौ कोने एक साथ देख लेने पर व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। परन्तु ताल की आकृति कुछ इस प्रकार बनी है कि कोई भी व्यक्ति सात कोनों से अधिक कोने एक साथ नहीं देख सकता। पक्षियों के निवास के लिए यह ताल उत्तम है। कई विदेशी चिड़ियाएं यहां देखी जा सकती हैं। ताल में कमल के फूल खिले रहते हैं। मछलियां भी इस ताल में बहुतायत से मिलती है।
सातताल:-
भीमताल से चार किलोमीटर की दूरी पर सातताल है। यह कुमाऊं के सुन्दरतम तालों में से एक है। प्रकृति ने अपना सम्पूर्ण सौन्दर्य उदारतापूर्वक इस ताल को दिया है। घने बांझ के वृक्षों से घिरा यह ताल समुद्र तल से ।३८१ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह तीन तालों का समूह है। जिन्हें राम-सोता-लक्ष्मण कहा जाता है। इसी ताल से अन्य सात ताला का क्रम प्रारम्भ हो जाता है। इसलिए इसे सातताल कहा जाता है। पर्यटन की दृष्टि से यह ताल सभी सुविधाओं से युक्त है।
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नल-दमयन्ती ताल:-
महरागांव-सातताल मोटर मार्ग से तीन किलोमीटर दूरी पर यह ताल स्थित है। इस ताल के पांच कोने हैं। जनश्रुति के अनुसार नल-दमयन्ती अपने जीवन के संघर्षपूर्ण दिनों में यहां रहे। जिन मछलियों को उन्होंने काटकर कढ़ाई में पकाने के लिए डाला था वे भी उड़ गयी थी। कहते हैं वे कटी हुई मछलियां आज भी ताल के जल में विचरण करती दिखाई दे जाती हैं। इसी कारण इस ताल से मछलियां नहीं पकड़ी जाती।
खुरपाताल:-
नैनीताल-कालाढूंगी मोटर मार्ग पर नैनीताल से छः किलोमीटर की दूरी पर जानवर के खुर के आकार का यह ताल है। जिसे अपने ही आकार के कारण खुरपाताल कहा जाता है। इस तालु में मछलियां बहुतायत से हैं। जिन्हें बच्चे भी बहुत आसानी से पकड़ सकते हैं। ताल के चारों ओर गांव की खेती के सीढ़ीनुमा खेत इस ताल को एक अलग सौन्दर्य प्रदान करते हैं। यह ताल गांव वालों के लिए वरदान सा देता प्रतीत होता है। हरे-भरे खेत के बीच स्थित यह ताल बहुत सुन्दर दर्पण-सा लगता है।
द्रोण सागर:-
काशीपुर से दो किलोमीटर की दूरी पर यह ताल है। माना जाता है कि यही गुरु द्रोण ने अपने शिष्यों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी। गुरु द्रोण की भव्य प्रतिमा भी इस ताल के किनारे पर बनायी गयी है। ऐतिहासिक व धार्मिक दृष्टि से इस ताल का विशेष महत्त्व है।
गिरिताल:-
काशीपुर रामनगर मोटर मार्ग में तीन किलोमीटर दूरी पर यह ताल स्थित है। यहां चामुण्डा संतोषी माता, नागनाथ, मनसा देवी के सुन्दर व भव्य मंदिर है। पर्यटन की दृष्टि से इस ताल का विशेष महत्त्व है।
डोडीताल:-
उत्तरकाशी में गंगोत्री से डोडोताल का रास्ता जाता है। छ: कोनों वाला ताल लगभग 3307 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चारों और रई, गुरैडा और भोजपत्र के सुन्दर वृक्ष और स्वच्छ नीलिमा लिये हुए वन विभाग द्वारा पाली मछलियों को जल क्रीड़ा, दक्षिण किनारे पर शिव मन्दिर वन विभाग का विश्रामगृह ताल के पूर्वी भाग में सुन्दर पर्वत श्रृंखला डोटीवाल के सौन्दर्य को बढ़ा देता है। उत्तरकाशी से 7 किलोमीटर कल्याणी तक मोटर मार्ग है। आगे 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा अगोड़ा तक है। इस ताल में ट्राउट मछलियां पाई जाती है।
देवरिया या देवहरिया ताल:-
जिला रुद्रप्रयाग में ऊखीमठ के सारी गांव से तीन किलोमीटर दूरी पर 3220 मीटर की ऊंचाई पर यह ताल स्थित है। लगभग एक मौत लम्बा, आधा मील चौड़ा यह ताल प्रकृति को सुन्दर रचना है। चौखम्बा को हिमाच्छादित पर्वतश्रेणी मानो अपने ही सुन्दरता को इस दर्पण रूप ताल में निहारती हो। देवरिया ताल को देखने पर ऐसा ही प्रतीत होता है।
वासुकी ताल:-
केदार धाम के पश्चिम में चार किलोमीटर की पैदल यात्रा करके इस अद्वितीय ताल तक पहुंचा सकता है। इस ताल में कमल और विशेष रूप से नील कमलों की शोभा देखते ही बनती है। हिम श्रृंखलाओं का प्रतिबिम्ब ताल के सौन्दर्य को द्विगुणित कर देता है। इस ताल में रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती है। समुद्र तल से 4135 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह ताल साहसिक पर्यटन की दृष्टि से उत्तम है।
अछरी या अप्सरा ताल:-
यह ताल समुद्र से 4800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। टिहरो जिले में बूढ़ा कंदार व धुन्तु से सहस्रताल मार्ग प्रारम्भ होता है। 'अउरी' शब्द का अर्थ गढ़वाली बोली में 'अप्सरा' है अतः इस ताल को अनारा ताल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि हिमालय की अप्सरायें इस ताल में स्नान करती हैं। कुरा कल्याण से तीन मील पर कोटाली शिखर इससे आगे खल्याणा खोला और इससे तीन मोल की चढ़ाई के बाद यह अभूतपूर्व ताल है।
लिंगताल:-
अछरो या अप्सरा ताल के समीप 500 मीटर की ऊंचाई पर कुरली की धार और इसके सामने फटार के आकार की हिमाच्छादित द्रुपदा कटार है। इनके मध्य मातृका ताल और इस ताल से एक फलांग की दूरी पर भव्य लिगवाल स्थित है। इस ताल के मध्य में सुन्दर स्लोटों से सजा एक टापू है। लिंग के रूप में सूर्य की रोशनी में इसकी सुन्दरता अवर्णनीय है। बूढ़ा केदार से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर यह ताल स्थित है। मातृका ताल लिंगताल से उत्तर की ओर शिलाखण्डों को पार करके मातृका ताल के दर्शन होते हैं। इसे देवियों का या मातृ-शक्ति का ताल भी कहा जाता है। बूढ़ा केदार से 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह ताल चार फलांग के लगभग फैला हुआ है।
नरसिंह ताल:-
मातृका ताल से आगे नरसिंह ताल है जो कि मातृका और लिंगताल से छोटी है। बूढ़ाकंदार से 39 किलोमीटर की दूरी पर यह ताल स्थित है।
सिद्ध ताल:-
नरसिंह ताल से 20 किलोमीटर की ऊंचाई चढ़ने पर इस ताल के दर्शन होते हैं। इस ताल की तलहटी पर पत्थर की स्लेटें हैं। उन स्लेटों से स्वाभाविक रूप से एक पुरुष मूर्ति का आभास होता है। सम्भवतः इसीलिए इस ताल का नाम सिद्ध ताल पड़ा।
यम ताल:-
सिद्ध ताल से आगे सदैव हिम से ढका यमताल है। बर्फ जमी रहती है। जिसके ऊपर सावधानी से चलना पड़ता है। इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं पैर बर्फ की कमजोर सतह पर न पड़ जाए। यदि असावधानी से ऐसा हो गया तो व्यक्ति का जीवित रहना असम्भव है। इसी कारण इसको यम ताल कहा जाता है। रात में यहां विश्राम करने की कोई व्यवस्था नहीं है। यात्रीगण अपने तम्बू लेकर विश्राम करते हैं।
यह ताल गढ़वाल के तालों में सबसे बड़ा व गहरा है। 4572 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस ताल में प्रकृति के अद्भुत रूप से दर्शन होते हैं। इसके पूर्वी किनारे पर द्रुपदा की कटार है। जिससे हिम गलकर इस ढाल में आती रहती है। सिद्धताल, नरसिंह ताल और लिंगताल से निकलने वाली पिलंग गंगा का पानी सहस्रताल के उत्तरी छोर से पानी की धारा के रूप में प्रारम्भ होता है। इस ताल के दक्षिण पश्चिम में विशाल शिलायें और उत्तरी छोर पर फूलों से आच्छादित समतल भूमि है। इस ताल की तलहटी में भी करोड़ों देवताओं के बैठने के लिए करोड़ों चौकियां बिछी हैं। स्वच्छ जल होने के कारण स्लेट से बनी ये चौकियां देखी जा सकती है। इससे कुछ दूरी पर एक और सहम्रताल है। जिससे भिलंगना नदी निकलती है। धुन्तु से गंगी कल्याणी होकर व बूढ़ा केदार से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी है। परन्तु ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है।
मासर ताल:-
इसकी ऊंचाई 4572 मोटर है। सहस्रताल जाते समय मासर ताल रास्ते में मिलता है। यह कटोरेनुमा दो ताल है। जो भाई-बहनों के ताल कहे जाते हैं। चारों ओर घने वृक्ष और बुग्याल इसकी शोभा बढ़ाते हैं। यहां पर पर्वो पर स्थानीय लोग तैराकी प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं।
गांधी सरोवर:-
इस ताल में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अस्थियों का विसर्जन किया गया था। अत: इसे गांधी ताल के नाम से पुकारा जाता है। इस ताल को चौखाड़ी ताल भी कहा जाता है। केदारनाथ की पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी में यह ताल स्थित है। इसलिए इसका मार्ग केदारनाथ से होकर हो जाता है।
रूपकुण्ड:-
चमोली जिले के नन्दा राजजात यात्रा मार्ग में ज्योंरागली घाटी में 5200 मीटर की ऊंचाई पर गोलाकार कुण्ड है। प्राचीन कथा के अनुसार शिव पार्वतो ने कैलाश जाते हुए इस कुण्ड का निर्माण किया। कुण्ड के निर्मल जल में अपने प्रतिबिम्ब को देखकर मां पार्वती स्वयं के रूप पर हो विमुग्ध हो गयी थी, और अपने सौन्दर्य का आधा भाग वहीं छोड़ गयीं। मां पार्वती के रूप में ही यह कुण्ड रूपवान् है। प्रकृति ने अपने अन्तर्मन का सम्पूर्ण सौन्दर्य यहाँ बिखेर दिया हो। रूपकुण्ड को देखकर ऐसा हो प्रतीत होता है। रूपकुण्ड को
सहस्रताल:-
परिधि 1.50 मोटर व्यास 45 मीटर और विस्तार 2000 वर्ग मीटर है। पश्चिमी तट पर 25 मीटर और उत्तर पूर्वी तट पर 100 मीटर की गहराई है। कुण्ड का यह कुण्ड प्रायः वर्ष भर बर्फ से ढका रहता है।
ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस स्थान का अपना महत्त्व है। 600 वर्ष पूर्व राजा यशधवल और रानी बल्पा तथा उनके सैनिकों के अस्थि कंकाल आज भी इस क्षेत्र में मिलते हैं। लोहा जंग पास से लगभग 39 किलोमीटर की दूरी पर यह स्थल है। यहां रहने के लिए अपने आप ही व्यवस्था करनी पड़ती है।
हेमकुण्ड लोकपाल:-
इस कुण्ड के किनारे पर ही सिक्खों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने तपस्या की थी। यहां पर लक्ष्मण का मंदिर है। एक प्रसिद्ध गुरुद्वारा भी है। यह ताल 4329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
संतोपथ ताल:-
बद्रीनाथ से उत्तर पश्चिम की ओर 27 किलोमीटर की दूरी पर माणा, वसुधारा होकर इस ताल तक पहुंचा जा सकता है। यह ताल 4402 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। इस ताल के तीन कोण हैं। कहा जाता है कि इसके तीनों कोणों में ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने तपस्या की थी। दो मील की परिधि में यह ताल फैला हुआ ताल फैला हुआ है। इसी के पास ही सूर्यकुण्ड और चन्द्रकुण्ड नाम के दो ताल और हैं।
भेकल ताल:-
समुद्र तल से 2900 मीटर की ऊंचाई पर मुडोली से तीन मील की दूरी पर यह नीले रंग का आकर्षक ताल है।
वेणीताल:-
आदि बदरी से तीन मील की दूरी पर चार फलांग में फैला हिमाच्छादित पर्वतों की छाया से शोभायमान घने वृक्षों के मध्य यह सुन्दर ताल स्थित है। यहां पर गैरसैंठा खेती से भी जाया जा सकता है।
नचिकेता ताल:-
उत्तरकाशी जिले में लम्बगांव उत्तरकाशी मार्ग पर यह तालाब स्थित है। पहुंचने में सुगम होने के कारण यहां पर्यटक काफी मात्रा में आते हैं। जिसके कारण यहां का मार्ग थोड़ा-सा प्रदूषित भी हो गया है। पर्यटन की दृष्टि से इस ताल का विशेष महत्त्व है। अत: मार्ग की देखभाल तथा यात्रियों के आवागमन के कारण होने वाली गंदगी की रोकथाम के लिए विशेष प्रबन्ध की आवश्यकता है।
बदाणी ताल:-
लस्तर गाढ़ से जुड़ता हुआ जखोली के लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर यह ताल है। यह ताल रुद्रप्रयाग जिले में है। यहां पर प्रतिवर्ष मेला लगता है।
भराड़सर ताल:-
यह ताल उत्तरकाशी जिले में है। समुद्र से 5900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह ताल गढ़वाल के मुख्य तालों में से एक है।
बयाँ ताल:-
यह ताल उत्तरकाशी जिले में है, यहां का पानी उबलता हुआ है। रस्याड़ाताल उत्तरकाशी जिले में खाई के ओसला गांव से स्वर्गारोहणी की ओर सुन्दर बुग्यालों के मध्य यह ताल है। इस ताल से एक रास्ता यमुनोत्री के लिए भी जाता है।
केदारताल:-
गंगोत्री से 18 किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है। स्थानीय गाइड की आवश्यकता यहां पहुंचने के लिए अति आवश्यक है। थलैयासागर की विशाल पर्वत श्रृंखला इस ताल की सुन्दरता को और भी बढ़ाती है। यह स्थान समुद्र तल से 4425 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। थलैयासागर जोगिन, भृगुपन्थ का अन्य शिखरों पर आरोहण के लिए आधार शिविर यहाँ लगाये जाते हैं।
सातताल:-
उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री मार्ग में हरसिल नाम का एक रमणीक स्थान है। हरसिल से धराली गांव की खड़ी चढ़ाई पार करके भोजपत्रों के वृक्षों से घिरा यह अनुपम सातताल है। जिसके सौन्दर्य का वर्णन करना सम्भव नहीं है।
खिड़ा ताल:-
उत्तरकाशी के हुरी गांव में स्वच्छ जल से युक्त यह सरोवर है।
काणाताल:-
डोडीताल से थोड़ा आगे यह ताल है। इसमें सदा जल नहीं रहता है। इसीलिए इसे काणा (अन्धा) ताल कहा जाता है।
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