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Monday, January 24, 2022

Uttarakhand ka parichay bhaag 3

 

उत्तराखण्ड देवभूमि का परिचय:-



उत्तराखण्ड देवभूमि की जलवायु:-


किसी भी क्षेत्र की वनस्पति, कृषि, मानवीय रीति-रिवाजों आदि पर जलवायु का विशेष प्रभाव पड़ता है। भौतिक परिवेश से लेकर सांस्कृतिक

तत्त्वों पर भी जलवायु की स्पष्ट छाम देखी जा सकती है। उत्तराखण्ड में धरातलीय रचना के अनुरूप ही जलवायुवीय दशायें पाई जाती हैं।


Uttarakhand ka parichay

उत्तराखण्ड देवभूमि




ग्रीष्मऋतु:-


ग्रीष्मकाल जिसे स्थानीय भाषा में (रूढ़) कहा जाता है मार्च से प्रारम्भ होकर मध्य जून तक रहती है। ग्रीष्मकाल में घाटियों में उष्ण कटिबन्धीय दशायें पाई जाती हैं। मार्च से तापमान में वृद्धि आरम्भ हो जाती है। जलवायु उष्ण-कटिबन्धीय रहती है जबकि ऊंचे पर्वत हिमाच्छादित रहते हैं। नैनीताल का ग्रीष्मकालीन तापमान अधिकतम 24.7 एवं न्यूनतम तापमान 7.8° सेन्टीग्रेड रहता है तथा मौसमी तापान्तर 16.9° सेन्टीग्रेड है जबकि देहरादून में जुलाई का तापमान 30.1° सेन्टीग्रेड रहता है। सांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार 1998-99 में न्यूनतम तापमान जोशीमठ में 1.90 सेन्टीग्रेड तथा अधिकतम 40.50 सेन्टीग्रेड पंतनगर (उधमसिंह नगर) में रहा।



शीत ऋतु:-


नवम्बर से जनवरी तक तापमान निरन्तर घटता रहता है। जनवरी सबसे अधिक ठण्डा माह है। दिसम्बर एवं जनवरी में पाला पड़ता है तथा सूर्योदय के पूर्व तथा बाद में दो तीन घण्टों तक कोहरा छाया रहता है। ऊंचे पर्वतों पर हिमपात होता है। पर्वतीय शिखर सदैव हिमाच्छादित रहते हैं। 3330 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले भागों में शीतकालीन तापमान क्वथनांक बिन्दु से कम रहता है।


शीत ऋतु में वर्षा पश्चिमी चक्रवातों से होती है। चद्रात्रातों के साथ ओलों की वर्षा होती है। पर्वतीय क्षेत्र के पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, अल्मोड़ा एवं देहरादून जिलों में शीत ऋतु में सबसे अधिक वर्षा होती है जिसकी मात्रा 12.5 सेन्टीग्रेड से कुछ अधिक है।


वर्षा ऋतु:-


वर्षा ऋतु मध्य जून से सितम्बर तक रहती है। जून से मध्य सितम्बर तक मानसून सक्रिय रहता है। मुख्य वर्षा ऋतु 15 जुलाई से 20 अगस्त तक रहती है। अरब सागर की मा…

सेन्टीमीटर तक कहीं-कहीं इनसे भी अधिक होती है। वर्षा बाह्य हिमालय क्षेत्र में सर्वाधिक होती है। नैनीताल व मंसूरी की वार्षिक औसत वर्षा क्रमशः 165 व 242.5 सेन्टीमीटर है। जबकि अल्मोड़ा में 136.6 सेन्टीमीटर वर्षा होती है। 1999 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में 107.9 सेन्टीमीटर वर्षा हुई।



कुछ क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का वितरण:--




स्थान

वर्षा (सेन्टीमीटर)

अल्मोड़ा

136.6

नैनीताल

165

टिहरी

80

देहरादून

212

नरेन्द्र नगर 

318

मंसूरी 

242.5

कोटद्वार

180

श्रीनगर

93







शरद ऋतु:-


सितम्बर के अन्त तक सूर्य कर्क रेखा से लौटकर विषुवत् रेखा पर पहुंच जाता है। ऐसी अवस्था में मानसून लौटने लग जाते हैं। मानसून के निवर्तन के साथ ही तापमान गिरने लगते हैं। शरद ऋतु की अवधि मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक की होती है। शिवालिक क्षेत्र की जलवायु

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इस क्षेत्र की जलवायु कुमाऊ पर्वतीय प्रदेश की अपेक्षाकृत गर्म एवं आर्द्र है। ग्रीष्मकालीन तापमान 29.4 से 32.89 सेन्टीग्रेड रहता है। निचली घाटियों में अधिकतम तापमान 43.30 सेन्टीग्रेड तक पहुंच जाता है। शीतऋऋतु का तापमान 4.4° से 7.2° सेन्टीग्रेड रहता है। वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 से 250 असेण्टीमीटर है।

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सामान्यत: गर्मियां शीतल होती है, जिससे यहां के मंसूरी, चकराता, रानीखेत, अल्मोड़ा व नैनीताल आदि नगरों में मैदानी भागों से सहस्त्रों की संख्या में लोग आकर गर्मियां व्यतीत करते हैं। तापक्रम अधिक होता है


धरातलीय विषमताओं के कारण तापक्रम में वितरण सम्बन्धी विविधताएं पायी जाती है। हिम क्षेत्रों का अपना विशेष प्रभाव है। इस क्षेत्र को जलवायु दशाओं को जानने के लिए पर्वतीय क्षेत्रका प्रसार जानना भी आवश्यक है जो स्वत: ही तापक्रम का ऊध्र्ववत् वितरण भी प्रस्तुत करता है। प्रत्येक 1000 मीटर की ऊंचाई पर औसत तापक्रम लगभग 6 रेण्टीग्रेड तक घट जाता है। ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में विविधताएं भी बढ़ जातो है। सामान्यतः हिमालय क्षेत्र में अप्रैल-मई के महीनों में दैनिक तापान्तर सबसे भी अलग-अलग होती है। 1998-99 में न्यूनतम तापमान 1.9 सेण्टीग्रेड अधिक होता है। विभिन्न ऊंचाइयों पर तापक्रम घटने की दर ऋतु के अनुसार (जोशीमठ) तथा अधिकतम तापमान 40.5° सेण्टीग्रेड पन्तनगर (उधमसिंह निम्नांकित तालिका में उत्तराखण्ड के कुछ प्रमुख स्थानों के विभिन्न नगर) में रिकार्ड किया गया।



स्थान

अल्मोड़ा 

नैनीताल

मंसूरी

देहरादून

ऊंचाई(मीटर में )

1691

1971

2115

670

जनवरी

7.9

5.9

5.4

12.6

फरवरी

11.2

7.3

6.7

14.2

मार्च

14.0

7.3

10.9

18.9

अप्रैल

18.1

12.9

15.2

24.6

मई

21.2

15.7

20.7

27.7

जून

23.8

18.8

20.2

28.3

जुलाई

22.8

20.4

18.1

26.6

अगस्त

22.5

20.1

17.7

26.0

सितम्बर

22.5

19.5

16.6

25.1

अक्टूबर

18.4

18.4

14.0

21.3

नवम्बर

14.3

15.1

11.1

16.8

दिसम्बर

10.6

8.0

8.0

13.3








इस प्रकार स्पष्ट है कि जलवायु उत्तराखण्ड के मानवीय व सांस्कृतिक तत्वों को प्रभावित करती है। यहां की जलवायु का प्रभाव वनस्पति पर साफ दृष्टिगोचर होता है।







उत्तराखण्ड देवभूमि का जल-प्रवाह:-


हिमालय भारत का सबसे बड़ा जलग्रहण क्षेत्र है। उच्च हिमालय से टकराने के कारण मानसूनी हवाएं आगे नहीं बढ़ पाती। इस कारण हिमालय में व्यापक वर्षा होती है। मानसूनी हवाओं के अलावा भी यह क्रम चलता रहता है। फलतः हिमालय भारत का अजस्र जलस्रोत है।


जलनिधि समुद्र के लिए कहा जाता है लेकिन हिमालय भारत के लिए समुद्र से भी महत्त्वपूर्ण जलनिधि है। यह जल हिमानियों के रूप में भंडारित है। इसलिए हिमालय को भारत का वॉटर बैंक (एन. भंडारी तथा वी.एन. मजूमदार, 1988) कहा गया है। सभी हिमानियां हिम रेखा से ऊपर स्थित हैं। हिमालय में हिमरेखा लगभग 4000 मीटर से शुरू हो जाती हैं।

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उत्तराखण्ड देवभूमि



हिमालय में लगभग 15000 छोटी-बड़ी हिमानियां हैं (विसमैन, 1959) एक सामान्य हिमालयन ग्लेशियर में 1/10 क्यूबिक कि.मी. पानी होता है। हिमानियां उच्च हिमालय में स्थित है अतः जब भी बरसाती हवाएं यहां पहुंचती हैं तो शून्य से कम तापमान होने के कारण वे बर्फ की वर्षा करती हैं। यह क्रम चलता रहता है। फलतः हिमालय में इस तह के ऊपरी तह पर बर्फ जमतो चलती जाती है और विराट हिमानियों का रूप ले लेती है। इस प्रकार हिमालय ठोस जल का संचयन करता रहता है। हिमानियों की यह परत 120 से 300 मीटर मोटी बन जाती है तथा कम से कम 10 मीटर रहती है।

उत्तराखण्ड हिमालय में अनेक हिमानियां है, जिनमें मिलम हिमनद (19 किलोमीटर), गंगोत्री (29 किलोमीटर), सतोपंथ (11 किलोमीटर), बढ़ा शिशरी (30 किलोमीटर), उत्तरी नंदादेवी (19 कि.मी.), माणा (19 किलोमीटर), भगीरथ खड़क (19 किलोमीटर), केदारनाथ (14 किलोमीटर) कोसा (11 किलोमीटर), सराअमगा (17 किलोमीटर) समुद्र टापू (9 किलोमीटर) आदि प्रमुख हैं।


कुछ वर्षों से हिमालय में मानवीय हस्तक्षेप के बढ़ने और किसी भी प्रकार के प्रबंधन के अभाव में हिमालयी जलवायु परिवर्तन हुआ है। इस परिवर्तन में रासायनिक प्रदूषण, जनसंख्या दबाव, वायुमंडल में कार्बनडाइ आवसाइड की बढ़ती हुई मात्रा, वनस्पति विनाश आदि कारकों का भी योगदान है। जियोलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के ग्लेशियोलोजिकल डिवीजन के अध्ययन के अनुसार गंगोत्री हिमानी 1936 से 1976 के बीच 600 मीटर पीछे खिसक गई और पिंडर हिमानी पिछले 130 वर्षों में 3 किलोमीटर पीछे खिसक गई (एन. भंडारी तथा वी.एन. मजुमदार, 1988)। गंगोत्री हिमानी के बारे में नवीन अध्ययनकर्त्ताओं का कहना है कि यह हिमानी जहां से आज शुरू होती है। पूर्वकाल में इससे 16 किलोमीटर पहले शुरू होती थी।


| उत्तराखण्ड हिमनदों के लिए प्रसिद्ध है। सदानीरा नदियां इन्हीं से निकलकर भारत के मैदानी क्षेत्र में बहती है खतलिंग, यमुनोत्तरी, गंगोत्तरी, पिंडर, सुंदरहूंगा, कफनी, मिलम और जौलिंगकोंग प्रमुख ग्लेशियर है।


उत्तराखण्ड में टौंस, यमुना, भागीरथी. भिलंगना मंदाकिनी अलकनंदा, पिंडर, सरयू, गौरी, धौली, कुटी, फालो आदि नदियां हैं जो हिमनदों से जन्म लेकर एक-दूसरे से मिलते हुए बंगाल की खाड़ी में पहुंच जाती हैं। लघु हिमालय से पश्चिमी रामगंगा, आरा, गाड़, बिनों आदि का उद्गम दूधातोली की पहाड़ी से होता है। कौसानी की पहाड़ी से कोसी और भाटकोट से गगास का उद्गम होता है। इसी प्रकार नंधौर, गोल, भाखड़ा बौर, दावका ढेला, खो, सोंग और अस अन्य मौसमी नदियां है। विश्व विख्यात गंगा व यमुना की मातृभूमि उत्तराखण्ड है। इस क्षेत्र में नदियों को गाड़, गधेरे नाम से पुकारा जाता है। भौगोलिक व आर्थिक दृष्टि से इन नदियों का बहुत महत्व है।

नदियों का जल-प्रवाह क्षेत्र इस प्रकार है

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उत्तराखण्ड देवभूमि




1. गंगा और उसकी सहायक नदियों का प्रवाह क्षेत्र:-


इस जल-प्रवाह क्षेत्र के अन्तर्गत गंगा के उद्गम स्थान से लेकर हरिद्वार तक मिलने वाली सहायक नदियां आती है गंगा, गंगोत्री से लगभग 20 किलोमीटर उत्तर पूर्व गौमुख से निकलती हैं। गंगोत्री ग्लेशियर से इसका

प्रादुर्भाव हुआ है। देवप्रयाग तक यह भगीरथी तथा अलकनंदा से मिल जाने पर गंगा कहलाती है। भिलंगना इसकी सहायक नदी है जो टिहरी में भगीरथी से मिलती है। मन्दाकिनी, पिण्डर, नन्दाकिनी, बालशिखा, बिरहीगंगा, पातालगंगा, गरुडगंगा अलकनंदा की सहायक नदियां है जो रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नन्दप्रयाग, विष्णुप्रयाग, केशवप्रयाग में संगम बनाती हैं। 6067 मीटर की ऊंचाई वाला ग्लेशियर अलकनंदा का उद्गम स्थान है। वसुधारा (122 मीटर ऊचाई) झरना इसी अलकनंदा पर ही है। शास्त्रोक्त सीर सागर (सतोपंथ) बद्रीनाथ से 25 किलोमीटर की दूरी पर अलकनंदा पर स्थित है।




2. यमुना व उसकी सहायक नदियों का जल प्रवाह:-

क्षेत्र पौराणिक कथाओं में यमुना यमराज की बहन, सूर्य की पुत्री और भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में कालिन्दी के नाम से प्रसिद्ध है। इस जल प्रवाह क्षेत्र में यमुना तथा टाँस दो प्रमुख नदिया है। यमुना का उद्गम स्थान यमुनोत्री ग्लेशियर है इसकी छोटी वेणी हनुमान गंगा खरसाली के पास यमुना में विलीन हो जाती है। सबसे प्रमुख सहायक नदी टॉस है जो तमसा नदी के नाम से भी जानी जाती है। यह बन्दरपूंछ के उत्तर भाग से जन्म लेती है। कालसी में आकर यमुना में मिल जाती है।




3. काली जल-प्रवाह क्षेत्र:-


काली गंगा के प्रवाह वृद्धि में प्रमुख व नदियों का प्रमुख स्थान है जो कल्याणी तथा कुत्थीयांगसी नाम से जानी जाती है। जौलजीवी नामक स्थान पर गौरीगंगा, काली में सम्मिलित हो जाती है। सरयू नदी बागेश्वर तथा रामेश्वर आदि स्थानों से होती हुई पंचेश्वर पहुंचकर काली नदी में विलीन हो जाती है।


इसके अतिरिक्त उत्तराखण्ड में रामगंगा, कोसी, गोला आदि अल्मोड़ा, नैनीताल की प्रमुख नदियां हैं। शिवालिक श्रेणियों में सोंग, खोह, दाबका, निहाल, गन्धौर आदि छोटी नदियां हैं।


भारतीय संस्कृति में नदियों का विशेष स्थान रहा है। उत्तराखण्ड हिमालय अनेको नदियों का उद्गम स्थल है। यहां की नदियां सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख साधन रही हैं। इन नदियों के किनारे अनेकों धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हुए हैं।

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उत्तराखण्ड की प्रमुख नदियां अगला भाग मैं है





















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